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Discovery of Cash register, Drive in movies, Paper cup, Elevator lift and Ferris wheel in Hindi

16 Cash register 
कैश/रोकड़ रजिस्टर



सन् 1879, ओहायो (अमरीका) का जेक रिट्टी नामक एक रेस्टोरेंट संचालक यूरोप की यात्रा पर था।

यह वो समय था जब हवाई यात्राएं उपलब्ध नहीं थीं। लिहाजा रिट्टी जलयान से जा रहा था। इस यात्रा के दौरान जब जहाज अटलांटिक पार कर रहा था तब इसके यात्रियों को जहाज पर एक टूर के तहत घुमाया जा रहा था। जैक को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली चीज वह थी जो उसने जहाज के इंजन कक्ष में लगी देखी थी। यह एक छोटी सी मशीन थी जो जहाज को गति प्रदान करने वाले पंखे के प्रत्येक चक्र का हिसाब रखती थी। - "एक ऐसी मशीन जो गिन सकती थी !" रिट्टी ने अपने आप से कहा और फिर वो शीघ्रता से यह सोचने लगा कि किस तरह से ऐसी ही कोई मशीन उसके व्यापार में उसकी सहायता कर सकती है।

 यह विचार कुछ ऐसे जुनून की शक्ल में रिट्टी पर हावी हो गया कि जहाज के यूरोप पहुंचते ही वह वापस घर की  ओर निकल पड़ा। घर पहुंचकर अपने विचार को साकार करने की धुन उस पर कुछ इस कदर हावी हो गई कि उसके लिए अब एक क्षण भी बरबाद करना कठिन था।

अपने भाई की मदद से उसने थोड़े ही समय में एक ऐसी चमत्कारी मशीन बना डाली जो सामानों का जोड़ एवं पैसों का हिसाब रख सकती थी। यह दुनिया का सबसे पहला कैश/नकद रजिस्टर था। रिट्टी ने इसे अपने रेस्टोरेंट में लगा दिया।

 इस मशीन की सहायता से बिलों को जोड़ना एवं हिसाब रखना एक आसान एवं तेजी से होने वाली प्रक्रिया हो गई थी। रिट्टी द्वारा निर्मित वह पहला कैश (नकद) रजिस्टर हस्त चलित था। आज के हमारे कश राज बिजली से भले ही चलते हों, पर इन सभी के पीछे बुनियादी सिद्धांत आज भी वही है।

 

17. Drive in movies
ड्राइव इन फिल्में


सन् 1920 और 1930 के दशक अमरीकी फिल्मी इतिहास के सुनहरे दशक कहे जाते हैं। यह वह समय था जब फिल्मों का जुनून हर ओर फैला हुआ था और शायद ही कोई इससे अछूता रहा होगा। यह वह काल था जब सामान्यतः हर सिनेमा-हाल दर्शकों से खचाखच भरा होता था।

रिचर्ड होलिंगशेड नामक एक व्यक्ति, जो सिनेमा थियेटर व्यवसाय में काम कर चुका था, ने खचाखच भरे सिनेमा-हाल और उसकी भीड़ के विकल्प के रूप में एक अन्य उपाय खोज निकाला। क्यों न एक ऐसा ड्राइव इन थियेटर खोला जाए जहां एक विशाल पर्दे पर फिल्में दिखाई जाएं जिसे दर्शक अपनी गाड़ी की एकांतता एवं आराम के साथ देख सकें।

आर सी ए-विक्टर होलिंगशेड के उस कथित सपने अर्थात विशाल ड्राइव इन थियेटर के निर्माण के लिए राजी हो गया। यह कोई छोटा काम न था। यह इंजीनियरिंग की दृष्टि से एक विशाल कार्य था और इसे खत्म होने में कुल तीन वर्ष का लंबा समय लगा। न्यूजर्सी (अमरीका) में स्थित एक दस एकड़ के प्लॉट पर निर्मित यह पहला ड्राइव इन थियेटर, जहां लोग किसी कुर्सी की बजाय अपनी गाड़ी में बैठकर फिल्में देखने का मजा ले सकते हों, 6 जून 1933 को व्यापार हेतु खोल दिया गया। कार मालिकों के लिए यह किसी अचंभे से कम नहीं था। अपनी अपनी गाड़ी में बैठे दर्शक पचास फीट चौड़े एवं चालीस फीट ऊंचे पर्दे पर चलती फिल्म का मजा ले रहे थे।

शुरू-शुरू में ड्राइव इन फिल्में केवल गर्म महीनों के दौरान ही चलाई जाता था। परंतु बीतते समय के साथ बेहतर सविधाओं जैसे व्य क्तिगत साकर, कार में लगे हीर्टर आदि ने इन डाइव इन फिल्मों को बारह महीनो का व्यापार बना दिया |

 

18. Paper cup 
कागजी कप  


बात सन् 1900 की है, तब अमरीका में आज की तरह सुविधाजनक एव साफ-सुथरी जल व्यवस्था न थी। सार्वजनिक स्थानों में पीने का पानी बड़े-बड़े ड्रमों में रखा रहता, जिसे पीने के लिए. एक कप पास ही टंगा रहता था। उस कप के एक सिरे से लंबी छड जडी रहती थी जिसकी

सहायता से पानी पीने का इच्छुक व्यक्ति उस कप को ड्रम में डबोकर पीता था।

ह्युमूर नामक एक नौजवान को पानी पीने का यह तरीका कतई पंसद नहीं था। उसके अनुसार यह तरीका सुविधाजनक नहीं था और न ही यह साफ सफाई की दृष्टि से एक स्वस्थ तरीका था। उसकी पहली पहल तो यह थी कि हरेक को बहता हुआ साफ-सुथरा पानी मिले और दूसरा ये कि उसे पीने का एक ऐसा साफ-सुथरा तरीका हो जो पूरी तरह से रोगाणु मुक्त हो।

 मूर ने इसके लिए एक कागजी कप का डिजाइन तैयार किया। शुरुआत में तो मूर द्वारा निर्मित कागज के कप कुछ अटपटे जरूर लगे पर फिर देखते ही देखते लोगों को इन कपों की सहायता से साफ-सुथरे ढंग से पाना पीना रास आने लगा। साफ-सथरे ढंग से पानी पीना हजारों लोगों क लिए एक विशेष आकर्षण बन गया। मूर की परिकल्पना साकार हो उठी। पाना अब ड्रमों की बजाय एक विशेष तरीके से बंद बोतल से बटन दबान १ एक धार के रूप में बाहर आता जिसे लोग उसके बनाए कप का सहा से पीते।

देखते ही देखते मूर द्वारा निर्मित यह कागजी कप रेलगाड़ियो  रेस्टोरेंट्स में प्रयोग होने वाली एक आम चीज हो गई। मूर द्वारा बनाए गए "हैल्थ कप" आगे चलकर 'डिक्सी कप' के नाम से मशहर हो गए।

सन् 1960 के आते-आते इन कपों की बिक्री 50 लाख डॉलर सालाना से भी ज्यादा हो गई थी।

 

19. Elevator lift 
एलिवेटर लिफ्ट


एलिवेटर अथवा लिफ्ट के बारे में आज हम सभी जानते हैं कि ये बहमंजिला इमारतों के लिए एक आवश्यक वस्तु है। इसकी सहायता से एक बहुमंजिला इमारत के किसी भी खंड तक आराम से खड़े खड़े ही पहुंचा जा सकता है। न मेहनत, न सीढ़ियां चढ़ने की जहमत, बस बटन दबाया और हो गया काम। परंतु क्या कभी आपने इसके आविष्कार के बारे में सोचा है?

किसी नई चीज अथवा मशीन को बनाने में अक्सर दुर्घटनाएं हो जाया करती हैं। अनेकों बार रसायन फट पड़ते हैं तो कई बार वाहन चकनाचूर हो जाते हैं। एलिवेटर अथवा लिफ्ट का मूल विचार सर्वप्रथम एलिशा ओटिस के मन में आया था। इन महाशय ने न सिर्फ लिफ्ट की परिकल्पना ही की अपितु इन्होंने इसे सुरक्षित बनाने के हर पहलू पर भी ध्यान दिया।

मानव ने सदियों से अपने दिमाग का प्रयोग करते हुए भारी चीजों को उठाने एवं ढोने का जतन किया है। सन् 1830 में इंग्लैंड एवं फ्रांस दोनों में आदमी एवं माल को ढोने के लिए एलिवेटर अथवा लिफ्ट का प्रयोग होना शुरू हो गया था। परंतु ये उतनी प्रचलित अथवा लोकप्रिय नहीं थी क्योंकि जब ये बहुत ही खतरनाक चीज हुआ करती थी। एलिवेटर का भारी बोझ ढोते समय उसकी सेफ्टी केबल (सुरक्षा तार) का एक झटके से टूट जाना तब एक आम घटना थी।

ओटिस ने इस खतरनाक स्थिति को सुधारने के लिए इस दशा में सोचना शुरू किया। केबल टट जाने की स्थिति में भी हादसा न हो. इसके लिए उसने रेलगाड़ी में प्रयक्त होने वाले एक भारी भरकम स्प्रिंग का प्रयोग

किया। यह स्प्रिंग केबल टूट जाने पर भी लिफ्ट को सुरक्षित रखता था।

सन् 1853 में हुई क्रिस्टल पैलेस प्रदर्शनी के दौरान ओटिस ने अपनी इस नायाब खोज को लोगों के सामने रखा। लोगों की भारी भीड़ के सामने

ओटिस एक लिफ्ट में चढ़ा। लिफ्ट जब काफी ऊंचाई पर पहुंची तो ओटिस ने उसकी सुरक्षा केबल काट दी। नीचे खड़े लोग किसी भयंकर दुर्घटना की प्रतीक्षा में सांस रोके खड़े रहे। परंतु यह क्या? लोग यह देखकर हैरान हो गए कि ऑटिस को कुछ नहीं हुआ था। वह पूर्णतः सकुशल था। ऑटिस द्वारा निर्मित सुरक्षा उपकरण ने अपना कमाल कर दिखाया था। ऑटिस ने खुशी से चहकते हुए लोगों के सामने अपना हैट लहराया।

आज के आधुनिक संसार की गगनचुंबी इमारतों की पहली आवश्यकता एलिवेटर अथवा लिफ्ट ओटिस के सुरक्षा उपकरण की बदौलत ही आज इतनी प्रचलित एवं सुरक्षित है।

 

20 Ferris wheel 
फेरिस व्हील


मेलों में विशाल पहियाकार झूलों को आपने अनेकों बार देखा होगा। इसकी सवारी जहां आनंद व रोमांच प्रदान करती है वहीं थोड़ा-थोड़ा भय भी पैदा करती है।

सन् 1892 में कोलंबस द्वारा अमरीका को खोजे जाने की 400वीं वर्षगांठ मनाने के उद्देश्य से एक विशाल मेले का आयोजन किया जाना तय हुआ। यह मेला इलिनोइस स्थित शिकागो में होना तय था। मेले को 'वर्ल्ड कोलंबियन एक्सपोजिशन' नाम दिया गया।

मेले की तैयारी में लगे हुए शिकागो के उच्चाधिकारियों ने देश भर के इंजीनियरों से एक ऐसा डिजाइन तैयार करने को कहा जो इस विशाल मेल में सभी के लिए एक कौतुहल भरा आकर्षण हो एवं जो अपने आकार एवं वास्तविकता में फ्रांस स्थित एफिल टावर की टक्कर का हो।

जॉर्ज वाशिंगटन गेल फेरिस नामक एक इकत्तीस वर्षीय इंजीनियर इस प्रस्ताव को सुनकर काम में लग गया। गेल का सपना एक विशाल ऊर्ध्वाकार घूमता हुआ पहिया था। एक ऐसा विशाल पहिया जिसके बाहरी सिरे से लगी बोगियों में बैठकर लोग इस घूमते पहिए का आनंद ले सकें। जिस किसी ने भी गेल के इस प्रस्ताव के बारे में सुना वह अपनी हंसी न रोक पाया। परंतु गेल फेरिस ने किसी पर भी ध्यान न देते हुए अपनी योजना को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। गेल फेरिस ने स्टील की मदद से अपने गोलाकार झूले को बनाया था। उसके इस झूले में कुल छत्तीस बोगियां थीं और इनमें से प्रत्येक बोगी में चालीस लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। मेले से थोड़ी ही दूरी पर लगा यह विशाल पहियाकार झूला लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया। इस झूले में चढ़ने वाले लोगों को उत्तेजना एवं डर दोनों का एहसास एक साथ होता था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि इसकी सवारी पूर्णतः सुरक्षित भी थी। देखते ही देखते इस झूले की ख्याति चहुं ओर फैल गई। लोग हजारों की संख्या में इसे देखने एवं इसकी सवारी का लुत्फ लेने के लिए आने लगे। 

मेले के उपरांत अंततः इस विशाल झूले को एक कबाड़ के रूप में बेच दिया गया। परंतु यह इसकी लोकप्रियता का ही आलम था कि सारे ससार ने इसे अपना लिया। आज हर छोटे-बड़े मेले में इसकी शिरकत एक आवश्यक अंग बनकर रह गई है। मानो विशाल गोलाकार झूला नहीं तो मेला नहीं।

आज बेशक गेल फेरिस हमारे बीच नहीं हैं पर उनके द्वारा बनाया गया बेजोड़ झूला आज भी उनको अमर रखे हुए है।

THE END

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